धर्म परिवर्तन करने वाले दलितों के लिए जल्द एक राष्ट्रीय आयोग की स्थापना को लेकर पैनल गठ‍ित करने की तैयारी की

RP, नई दिल्ली , NewsAbhiAbhiUpdated 19-09-2022 IST
धर्म परिवर्तन करने वाले दलितों के लिए जल्द एक राष्ट्रीय आयोग की स्थापना को लेकर पैनल गठ‍ित करने की तैयारी की

 केंद्र सरकार (Central Government) ने धर्म परिवर्तन (Converts Scheduled Castes) करने वाले दलितों के लिए जल्द एक राष्ट्रीय आयोग (National Commission) की स्थापना को लेकर पैनल गठ‍ित करने की तैयारी की है. केंद्र ने जांच आयोग अधिनियम, 1952 के तहत, ईसाई और इस्लाम में धर्म परिवर्तन करने वाले अनुसूचित जाति (Scheduled Caste) के लोगों के लिए एक राष्ट्रीय आयोग की स्थापना के लिए अंतर-मंत्रालयी चर्चा के आधार पर एक कैबिनेट नोट तैयार क‍िया.

इं‍ड‍ियन एक्‍सप्रेस में प्रकाश‍ित एक र‍िपोर्ट में बताया गया है क‍ि इस प्रस्ताव पर उच्च-स्तरीय व‍िचार व‍िमर्श चर्चा चल रहा है ज‍िसमें गृह, कानून, सामाजिक न्याय और अधिकारिता और वित्त मंत्रालय प्रमुख रूप से शाम‍िल हैं. केंद्र सरकार खासकर अनुसूचित जातियों, या दलितों के सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्थिति का अध्ययन करने के लिए ही इस राष्ट्रीय आयोग का गठन करने को पैनल तैयार करेगी जोक‍ि हिंदू, बौद्ध और सिख धर्म के अलावा अन्य धर्मों में परिवर्तित हो गए हैं. सूत्रों का मानना है क‍ि अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय और कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (DoPT) की ओर से पैनल गठन मामले में हरी झंडी दे दी गई है. और अब सरकार इस पर जल्‍द ही कोई न‍िर्णय लेने की तैयारी में है.

पैनल की रिपोर्ट सरकार की स्थिति के लिए महत्वपूर्ण होगी कि क्या धर्मांतरित दलितों को आरक्षण का लाभ दिया जा सकता है. क्योंकि यह एक ऐसा मुद्दा है जो अदालत में विचाराधीन भी है. दरअसल, 2020 में ईसाई समूहों द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दो याचिकाएं दायर की गई थीं, जिसमें मांग की गई थी कि एससी का दर्जा ‘धर्म तटस्थ’ बनाया जाए. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को नोटिस जारी किया है.

गत 30 अगस्त को, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली जस्टिस अभय एस ओका और विक्रम नाथ की बेंच को सूचित किया था कि वह याचिकाकर्ताओं द्वारा उठाए गए मुद्दे पर सरकार के रुख को रिकॉर्ड में रखेंगे. बेंच ने सॉलिसिटर जनरल को तीन सप्ताह का समय दिया और मामले को 11 अक्टूबर को सूचीबद्ध किया था. इसल‍िए इस तरह के आयोग के गठन का कदम उन दलितों के लिए सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष लंबित कई याचिकाओं के मद्देनजर महत्व रखता है, जो ईसाई या इस्लाम में परिवर्तित होने वाले दलितों के लिए एससी आरक्षण का लाभ चाहते हैं.

संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश, 1950, अनुच्छेद 341 के तहत यह निर्धारित करता है कि हिंदू, सिख और बौद्ध धर्म के दलित नौकरी और शिक्षा में आरक्षण के पात्र हैं. संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत जारी राष्ट्रपति के आदेश के अनुसार, यदि ईसाई और मुस्लिम धर्मों में परिवर्तित हो जाते हैं, तो दलित आरक्षण खो देते हैं. आजादी के बाद से सरकारों ने तर्क दिया है कि अनुसूचित जाति की स्थिति केवल हिंदू धर्म में प्रचलित अस्पृश्यता की प्रथा से जुड़ी हुई है. बाद में 1956 में सिखों और 1990 में बौद्धों को शामिल करने के लिए अलग-अलग संशोधन किए गए थे.

इस बीच देखा जाए तो यह मुद्दा दलितों तक ही सीमित है क्योंकि एसटी और ओबीसी के लिए कोई धर्म-विशिष्ट जनादेश नहीं है. डीओपीटी की वेबसाइट में कहा गया है क‍ि अनुसूचित जनजाति से संबंधित व्यक्ति के अधिकार उसके धार्मिक विश्वास से स्वतंत्र हैं. इसके अलावा, मंडल आयोग की रिपोर्ट के कार्यान्वयन के बाद, कई ईसाई और मुस्लिम समुदायों को ओबीसी की केंद्र या राज्यों की सूची में जगह मिली है.

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