नरेंद्र मोदी काे बतौर प्रधानमंत्री आज आठ साल पूरे हुए

RP, देश , NewsAbhiAbhiUpdated 26-05-2022 IST
नरेंद्र मोदी काे बतौर प्रधानमंत्री आज आठ साल पूरे हुए

  किस्से-कहानियां कहने-सुनने का कोई वक्त होता है क्या? शायद होता हो. या न भी होता हो. पर एक बात जरूर होती है. किस्से, कहानियां रुचते सबको हैं. वे वक्ती तौर पर मौजूं हों तो बेहतर. न हों, बीते दौर के हों तो भी बुराई नहीं. क्योंकि ये हमेशा हमें कुछ बताकर ही नहीं, सिखाकर भी जाते हैं. अपने दौर की यादें दिलाते हैं. गंभीर से मसलों की घुट्‌टी भी मीठी कर के, हौले से पिलाते हैं. इसीलिए ‘दास्तान-गो’ ने शुरू किया है, दिलचस्प किस्सों को आप-अपनों तक पहुंचाने का सिलसिला. कोशिश रहेगी यह सिलसिला जारी रहे. सोमवार से शुक्रवार, रोज… 

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वह तारीख़ 26 मई 2014 की थी और वक़्त शाम का. कोई सवा छह बज रहे होंगे. राष्ट्रपति भवन के खुले प्रांगण में खचाखच भीड़ के सामने मंच से एक आवाज़ गूंजी थी. तब राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का संकेत मिलते ही, ‘मैं नरेंद्र दामोदरदास मोदी…’ और इससे पहले कि बतौर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पद-गोपनीयता की शपथ पूरी करते, उनके समर्थकों ने देशभर में आतिशबाज़ी कर दी. क्योंकि इस लम्हे के साथ कई इतिहास बने थे. बाद कई बनने वाले थे. नरेंद्र मोदी के रूप में पहली मर्तबा कोई ग़ैरकांग्रेसी प्रधानमंत्री अपनी पार्टी को पूरा बहुमत दिलाकर गद्दी पर बैठा था. भारतीय जनता पार्टी ने उस साल चुनाव में 282 सीटें जीती थीं. इससे पहले अटल बिहारी वाजपेयी जैसे जनप्रिय प्रधानमंत्री भी भाजपा को इस मुक़ाम पर लाने में सफल नहीं हो पाए थे.

आम तौर पर प्रधानमंत्रियों की शपथ राष्ट्रपति भवन के ‘दरबार हॉल’ में हुआ करती थी. लेकिन खुले प्रांगण में ऐसी शपथ भी ऐतिहासिक थी. क्योंकि नरेंद्र मोदी से पहले 1990 में चंद्रशेखर और 1996, 1998 में अटलबिहारी वाजपेयी ने ही इस तरह शपथ ली थी. हालांकि नरेंद्र मोदी की शपथ सिर्फ़ इसी मायने में ऐतिहासिक नहीं थी. राष्ट्रपति भवन के प्रांगण में उस रोज दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) के सदस्य देशों के प्रमुख भी बैठे थे. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ भी. साथ में श्रीलंका, अफ़ग़ानिस्तान, मालदीव के राष्ट्रपति और भूटान, मॉरीशस, नेपाल के प्रधानमंत्री. बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने अपनी जगह वहां के निचले सदन की अध्यक्ष शिरीन शर्मिन चौधरी को भेजा था. यानी समारोह एक राजनयिक जमावड़ा भी बना.

इसके बाद तो यूं लगा गोया कि नरेंद्र मोदी इतिहास पर इतिहास लिखने के लिए ही आए हैं. शपथ लेने के चंद महीनों बाद सितंबर में जब वे अमेरिका पहुंचे तो वहां मेडिसन स्क्वायर पर करीब 20 हजार लोगों की भीड़ को संबोधित करने वाले हिंदुस्तान के वे पहले प्रधानमंत्री हुए. क़रीब छह महीने बाद यानी 2015 के जून महीने में दुनिया के तमाम देश जब योग आसन में बैठे नज़र आए, तो यह क़ारनामा भी नरेंद्र मोदी के ख़ाते में दर्ज़ हुआ. इसी बरस नवंबर के महीने में जब दुनिया के 121 मुल्क एक साथ सौर ऊर्जा के लिए किसी गठबंधन (अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन) की शक्ल में दिखे, तो उसके सूत्रधार भी नरेंद्र मोदी कहलाए. और फिर उसी बरस दिसंबर का महीना.

तब हिंदुस्तान, पाकिस्तान में चलने वाला एक जुमला नरेंद्र मोदी के मार्फ़त अमल में पाया गया था. ‘काबुल में नाश्ता, लाहौर में लंच, दिल्ली में डिनर.’ नरेंद्र मोदी अफ़ग़ानिस्तान से लौटते वक़्त रास्ते में अचानक पाकिस्तान के लाहौर में उतर गए थे. बीते 11 साल में पहली दफ़ा कोई हिंदुस्तानी प्रधानमंत्री पाकिस्तानी ज़मीन पर था. नवाज शरीफ की पोती की शादी में सवा दो घंटे रुककर वे दोनों मुल्कों के बीच बंधी गांठ खोलने की अपनी तरफ़ की कोशिश कर आए थे.

फिर सितंबर 2016 की 28, 29 तारीख़ें. हिंदुस्तान और पाकिस्तान की अवाम शायद ही कभी भूले. जब हिंदुस्तान की फौज़ की एक टुकड़ी पाकिस्तान की सरहद में जा घुसी. दहशतगर्दों के ठिकाने ही नहीं, उनके हौसले भी चूर-चूर कर दिए. अमन के वक़्त में, पहली मर्तबा ऐसा कर सकी थी हिंदुस्तान की फौज़. और साल 2016 के ही नवंबर का महीना. नोटबंदी. कालाधन और भ्रष्टाचार रोकने के लिए बड़े नोटों को चलन से बाहर करने का ऐसा फ़ैसला, जिसे करने से एक बार तो हौसलेदार प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी पीछे हट गई थीं. इसी तरह, जीएसटी. यह कानून लागू करने का हौसला कई प्रधानमंत्री हौसला न कर सके थे. मग़र मोदी ने कर लिया और लागू कर दिया. भ्रष्टाचार रोकने के लिए ही जनधन खाते. ताकि सरकार से मिला पैसा सीधे आम ज़रूरतमंद के पास पहुंचे. लोग नुक़्स निकाला करते थे शुरुआत में इस पर. मग़र आज तस्वीर बदली हुई है.

नेताओं के लिए चुनाव लड़ने और मंत्री, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री जैसे पदों पर बैठने की उम्र सीमा तय करना. सियासत में ऐसा करना आसान है क्या? लेकिन मोदी के दौर में आसान हो गया. पाकिस्तान के भीतर जाकर हिंदुस्तान के लड़ाकू जहाज दहशतग़र्दों के ठिकानों पर बम गिराकर सलामत लौट आएं, यह भी सोच से परे था, मग़र हो गया. भाजपा जैसी पार्टी, जो वर्ग-विशेष से जोड़ दी गई हो, दोबारा अपनी दम पर देश की सत्ता में लौट आएगी, ऐसा बड़े-बड़े सियासी पंडितों को भी कभी लगा नहीं था. बड़े ‘विशिष्ट समुदाय’ से जुड़ा ‘तीन-तलाक़ कानून’ और जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्ज़ा देने वाला अनुच्छेद-370 कभी लगामबंद कर दिया जाएगा, अयोध्या का झगड़ा निपट जाएगा, ऐसा भी किसी ने नहीं सोचा था. लेकिन ये सब और ऐसा बहुत कुछ हुआ.

हिंदुस्तान के सियासी इतिहास में नरेंद्र मोदी का नाम ऐसे नेता के तौर पर भी दर्ज़ है, जिन्होंने मुख्यमंत्री बनने से पहले कभी कोई चुनाव नहीं लड़ा. जो लगातार 13-14 साल मुख्यमंत्री रहते हुए सीधे प्रधानमंत्री पद पर पहुंचे. चुनाव मैदान में उतरने के बाद से आज तक जिन्होंने कभी कोई चुनाव नहीं हारा. जिनके हाथ में लगातार आठ साल से देश की कमान है और आगे भी कुछेक साल रहने वाली है. यानी यह मानकर चला जा सकता है कि इतिहास की क़िताब में अभी और भी काफ़ी कुछ दर्ज़ होने वाला है. इंतज़ार क़ायम रखिए.

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