देवउठनी एकादशी पर इस तरह करें पूजा, दूर होंगी शादीशुदा जिंदगी की परेशानियां
कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को प्रबोधनी एकादशी का व्रत किया जाता है। इस एकादशी को देवउठनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। शास्त्रों में इस एकादशी का बड़ा ही महत्व है। इस दिन विशेष रूप से भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है। साथ ही इसी दिन चातुर्मास भी समाप्त हो जाएंगे।
चातुर्मास के दौरान भगवान विष्णु का शयनकाल होता है। इन चार महीनों के दौरान विवाह आदि सभी शुभ कार्य बंद होते हैं। चातुर्मास समाप्त हो जाने से, शादी-ब्याह आदि सभी मांगलिक कार्य फिर से शुरू हो जायेंगे और मांगलिक कार्यों को और भी मंगल बनाने के लिये प्रबोधिनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह कराने की भी परंपरा है। इस दिन शालीग्राम और तुलसी का विवाह कराया जाता है।
कहते हैं कि जो कोई भी ये शुभ कार्य करता है, उनके घर में जल्द ही शादी की शहनाई बजती है और पारिवारिक जीवन सुख से बीतता है। तुलसी और शालीग्राम के विवाह का आयोजन ठीक उसी प्रकार से किया जाता है, जैसे कि कन्या के विवाह में किया जाता है। लिहाजा जिनके यहां कन्या नहीं है, वो तुलसी का विवाह करा के कन्यादान का पुण्य कमा सकते हैं। साथ ही जिन लोगों की कन्या के विवाह में किसी प्रकार की परेशानी आ रही है, वो भी जल्द ही दूर हो जायेगी और कन्या के लिये एक सुयोग्य वर की प्राप्ति होगी। इस प्रकार तुलसी विवाह सम्पन्न कराने के बाद तुलसी के पौधे और शालीग्राम को किसी ब्राह्मण को दान दे दिया जाता है।