मोतियाबिंद एक ऐसी खतरनाक बीमारी है जिसका सही समय पर इलाज कराना बहुत जरूरी है। नहीं तो धीरे-धीरे पुरानी होकर यह बीमारी आंखों को अधिक नुकसान पहुंचाती है। आंख की रोशनी जाने का भी खतरा बना रहता है। ऐसे में डाक्टर समय रहते इसका इलाज करवाने की बात कहते हैं। इसके बावजूद कई ऐसे लोग हमारे आस-पास रहते हैं जो जानकारी के अभाव या ठीक समय पर अस्पताल न पहुंच पाने की वजह से इलाज से वंचित रह जाते हैं।
बीमारी पुरानी हो जाने की वजह से जब अस्पताल पहुंचते हैं तब चिकित्सक इलाज करने में अक्षम हो जाते हैं, लेकिन अब किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) में मोतियाबिंद के पुराने मर्ज का भी सटीक इलाज किया जा सकेगा। इसके लिए नेत्र रोग विभाग के चिकित्सकों ने सर्जरी की एक नई तकनीक विकसित की है। नेत्र रोग विभाग के प्रोफेसर डा. संजीव कुमार गुप्ता ने बताया कि समय पर मोतियाबिंद का इलाज न होने पर आंख आगे चलकर भूरा होने लग जाता है। साथ ही कठोर हो जाने की वजह से आपरेशन की पारंपरिक विधि फैको इमल्सिफिकेशन से सर्जरी कर पाना मुश्किल हो जाता है। ऐसे मरीजों को ताउम्र बिना इलाज के ही रहना पड़ता है।
नेत्र रोग विभाग के डा. विशाल कटियार ने इसके इलाज के लिए नई तकनीक विकसित की है। इस तकनीक का नाम हारिजान्टल डायरेक्ट चौप रखा गया है। इस तकनीक के साथ एक नए उपकरण ब्लंट टिप्स नागहारा चापर का उपयोग कर सर्जरी पूरी की जाती है। डा. विशाल कटियार ने बताया कि हमारे पास आज भी कई ऐसे मरीज आते हैं जिनका मोतियाबिंद पुराना हो चुका होता है। ऐसे में उनके इलाज के लिए इस नई तकनीक को विकसित किया गया है। यह नई तकनीक काफी प्रभावी और सुरक्षित है। कई ऐसे रोगी जिन्हें फेको सर्जरी के लिए मना कर दिया गया था, उनकी सर्जरी की गई है। कुछ और मरीजों को चिन्हित कर उनकी सर्जरी करने की तैयारी की जा रही है।