उपभोक्ता मामलों के विभाग (डीओसीए) ने कस्टमर्स से जबरन सेवा शुल्क (सर्विस चार्ज) वसूलने के खिलाफ रेस्टोरेंट्स को चेतावनी दी है. मनीकंट्रोलके अनुसार, केंद्रीय विभाग ने कहा है कि सर्विस चार्ज देना या न देना पूरी तरह उपभोक्ता के विवेक पर निर्भर करता है और यह स्वैच्छिक है.
डीओसीए ने 23 मई को कहा कि ऐसी जानकारी मिली है कि रेस्टोरेंट्स व ईटरीज अब भी ग्राहकों से अनिवार्य रूप से सर्विस चार्ज ले रहे हैं जबकि यह पूरी तरह स्वैच्छिक है. विभाग ने कहा है कि कंज्यूमर इसके लिए कानूनी रूप से बाध्य नहीं है. उपभोक्ता मामलों के सचिव रोहित कुमार सिंह ने एक पत्र लिखकर नेशनल रेस्टोरेंस एसोसिएशन को कहा है कि रेस्टोरेंट्स और ईटरीज ग्राहकों से बाय डिफाल्ट सर्विस चार्ज वसूल रहे हैं. उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने भी हाल ही में कहा था कि रेस्टोरेंट्स द्वारा तय की गई ऊंची दरों पर ग्राहकों को सर्विस चार्ज देने के लिए मजबूर किया जा रहा है.
नेशनल रेस्टोरेंस एसोसिएशन की बैठक
आम लोगों द्वारा सोशल मीडिया पर उठाए जा रहे इस मुद्दे पर स्वत: संज्ञान लेते हुए डीओसीए ने नेशनल रेस्टोरेंट एसोसिएशन की 2 जून को बैठक बुलाई है. इस बैठक में ग्राहकों की विभिन्न शिकायतों, रेस्टोरेंट्स के बिल में अन्य चार्जेस व सर्विस चार्ज जोड़ने, सर्विस चार्ज स्वैच्छिक व वैकल्पिक होने की जानकारी ग्राहकों को नहीं देने व सर्विस चार्ज नहीं देने वाले ग्राहकों को शर्मिंदा किए जाने जैसे मसलों पर चर्चा होगी.
5 साल पहले जारी हो चुके हैं निर्देश
2017 में उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने एक निर्देश जारी करते हुए कहा था कि सर्विस चार्ज वाले कॉलम को खाली रखना चाहिए और इसका भुगतान उपभोक्ता के विवेक पर छोड़ देना चाहिए. खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों के तत्कालीन मंत्री दिवंगत राम विलास पासवान ने कहा था कि यह पूरी तरह स्वैच्छिक शुल्क है और बिलकुल अनिवार्य नहीं है. जारी की गई गाइडलाइन्स के अनुसार, अगर उपभोक्ता को लगता है कि उसके साथ अनुचित व्यापार किया जा रहा है तो वह उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के पास अपनी शिकाय लेकर जा सकता है.
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